मानसिक स्वास्थ्य
Arz Kiya Hai: न जाने कब: Depression पे हिंदी शायरी
न जाने कब
न जाने कब मैं इस ख़ामोशी का शिकार हो गया
छूट सी गयी हर आस जीने की, मैं ज़िन्दगी से बेज़ार हो गया
गिरता ही गया बेबसी के, एक अंधे कुंए मैं
घिरता ही गया, अपने ही बने दायरों मैं
हर कोशिश उबरने की,
होती गयी नाकाम
तब मैं अपनी ही सोच से, लाचार हो गया
लगता है जैसे जीने का हर मकसद, खो गया
छूट गया हर साथ, मैं अकेला रह गया
खोता गया बस, अपनी ही कश्मकश मैं
मैं, खुद को मिटाने को, तैयार हो गया
मेरी उदासी का सबब, कौन जनता है
ये मायूसी का आलम, कौन पहचानता है
साथ सब हैं, फिर भी मैं तनहा हूँ
इस हाल में जीना, दुष्वार हो गया
कई बार बिन कहे आवाज़ दी, मुझे बचालो
मैं फसा हूँ इस दलदल में , मुझे बाहर निकालो
न जाने कैसे खौफ ने, मुझ को जकड़ रक्खा है
क्यों मैं मदद पाने में , नाकाम हो गया
इस ख़ामोशी में, एक धीमी आवाज़ सुनाई दी है
इस अँधेरे को चीरती, एक रौशिनी दिखाई दी है
थक हार के जब मैंने पुकारा, नाम यीशु का
उस लम्हे से, वो मेरा मददगार हो गया
तोड़ दी हर जंजीर, जो मेरी सोच पे पड़ी थी
डहा दी हर दिवार, जो मुझे घेरे खड़ी थी
मैंने सत्य को जाना, और सत्य ने किया मुझे स्वतंत्र
मैं अपनी हर कैद से, आज़ाद हो गया
खुद को मिटा देने का जुनूं, मुझ पे सवार था
अपने हर गलत फैसले पर, मैं बेहद शर्मसार था
जान देकर भी मिल न पाती, नज़ात मुझको
पर मेरे एवज़ में मसीहा, खुद कुर्बान हो गया
अब है न कोई रंजोगम, न शिकवा शिकायत कोई
न रही कोई उलझन, न रही कश्मकश कोई
यीशु के आने से, बदल गयी अब सारी फ़िज़ा
